The Train... beings death 15
एकाएक जोरदार आवाज से सभी का ध्यान शीतल से हट कर दूसरी ओर चला गया। ये आवाज एक मशीन से आई थी जो कि प्रेशर को बर्दाश्त नहीं कर पाई और जिसके कारण शॉट सर्किट हो गया था।
तभी एक और आवाज ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। वो आवाज थी उस बच्ची के चिल्लाने की...
आऽऽऽऽऽऽऽऽऽ......!!!!!!!!
थोड़ी देर में बच्ची के दर्द से चीखने की आवाजें पूरे रूम में गूंजने लगी थी। सभी के दिल उसकी दर्दनाक चीख से दहल उठे थे। उसकी चीख इतनी दर्दनाक थी कि सभी के साथ ही साथ डॉक्टर शीतल के भी रोंगटे खड़े हो गए थे।
धीरे धीरे बच्ची के शरीर में परिवर्तन होने लगे थे। उसके शरीर से पीत आभा निकल रही थी जो कि आसपास के टेंपरेचर को बढ़ा रही थी। लड़की के शरीर का टेंपरेचर भी नॉर्मल से काफी ज्यादा बढ़ गया था। जिसकी वजह से उसका पूरा शरीर लाल रंग का होता जा रहा था। आसपास बैठे सभी लोगों को भी शरीर में गर्मी के कारण जलन होने लगी थी। सभी ने घबराकर एक दूसरे को देखते हुए कुछ इशारा किया।
रोहित अचानक से उठ खड़ा हुआ और ऐ सी की तरफ चल दिया। सभी इस सिचुएशन में कुछ भी सोचने समझने की क्षमता जैसे खो ही चुके थे। रोहित ने एक झटके से ऐ सी का टेंपरेचर लो पर सेट कर दिया।
टेंपरेचर कम करने पर सभी को थोड़ी राहत मिली थी पर ये राहत कुछ ही देर की थी। सभी ने एक लंबी ठंडी साँस भरी और जैसे ही दूसरी साँस लेना शुरू किया तो हवा की ठंडक हवा ही हो गई थी.. और ठंडक की जगह ले ली थी.. तपती, झुलसाती और अंदर से आग लगाती गर्म हवा ने। ऐसा लगता था कि तपते, झुलसते रेगिस्तान में किसी ने बिना पानी के ले जाकर पटक दिया हो।
सभी हड़बड़ा कर कमरे से बाहर भागने की फ़िराक़ में नज़र आ रहे थे कि तभी डॉक्टर शीतल की आंखे तेजी चमकी और सारे बाहर भागने वाले स्टाफ का हौसला पस्त हो गया। सभी शीतल की घूरती और चुभती नजरो से डरकर बाहर भागने के विचार पर पुनर्विचार करने की सोच रहे थे।
इतने में जिस जार में उस लड़की को रखा था जोरदार आवाज करते हुए टूट गया और उसके टुकड़े इधर उधर बिखर गए। कुछ टुकड़े मशीन्स पर, कुछ सोफों पर और कुछ टुकड़े वहां खड़े लोगों को भी चुभ गए थे। जार के टूटते ही टेम्परेचर धीरे-धीरे वापस नॉर्मल हो गया था। माहौल में गरमाहट कम होते ही सभी ने चैन की साँस ली थी... लेकिन जार के टूटने से जो सबको चोट लगी थी उसका इलाज सबसे पहले आवश्यक था।
इंस्पेक्टर कदंब और कुछ स्टाफ मेंबर्स को उन काँचों के कारण चोट ज्यादा लगी थी.. चोट तो डॉक्टर शीतल को भी लगी थी लेकिन बहुत हल्की फुल्की खरोंचे आई थी।
बाहर किसी को भी ज्यादा कुछ पता ना चले इसलिए ही सभी की मरहम पट्टी वही की जा रही थी। अभी भी एक विचित्र सी रहस्यमय मुस्कान डॉक्टर शीतल के चेहरे पर थी.. जो सभी की समझ से परे थी। शीतल कुछ बता भी नहीं रही थी इसलिए सभी उससे कुछ नाराज से दिखाई दे रहे थे।
सभी की मरहम पट्टी के बाद सभी वही बैठे एक दूसरे की ओर बिना किसी भाव के देख रहे थे। पूरे कमरे में शांति पसरी हुई थी.. सांसो की आवाज भी डरावनी सी सुनाई दे रही थी.. घड़ी की टिक.. टिक.. भी हथौड़े की तरह सर पर बजती हुई सुनाई दे रही थी। बिल्कुल पिन ड्रॉप साइलेंस था उस कमरे में।
"दस कप कॉफी, चॉकलेट ब्राउनी, चीज़ ग्रिल्ड सैंडविच और फ्रेंच फ्राइज् सभी के लिए जल्दी ले कर आइए।" डॉक्टर शीतल ने चहकते हुए रिसेप्शन पर फोन कर कहा और रिसीवर रख दिया।
सभी के चेहरे पर तनाव साफ़ नजर आ रहा था पर डॉक्टर शीतल उसे देखते हुए भी अनदेखा कर रही थी।
बीस मिनट के बाद डॉक्टर शीतल का दिया ऑर्डर उस रूम में सर्व किया जा चुका था। शीतल बहुत ही खुशी से सभी को सैंडविच,फ्राइस और ब्राउनी सर्व कर रही थी। किसी का भी मन खाने का नहीं था पर भूख सभी को लगी थी तो मना करने का पश्न ही नहीं उठता था।
सभी अपने गुस्से को एक तरफ रखकर नाश्ते का आनंद लेने लगे। हल्की-फुल्की नोकझोंक, मस्ती मज़ाक के बीच सबका नाश्ता खत्म हुआ और सभी बातें करने लगे.. और जैसा कि नीरज का स्वभाव था उसने मौके का फायदा उठाते हुए तुरंत ही शीतल से पूछा, "डॉक्टर..!! जैसा कि सभी को दिखाई दे रहा है.. के आपका किया गया ये एक्सपेरिमेंट तो फेल हो गया है और आप सभी को पार्टी दे रही हैं। आपको क्या लगता है.. ये कहाँ तक ठीक है और तो और आपके चेहरे पर जो मुस्कान है.. उसे देखते हुए तो यह लगता है कि आप खुद से उस जानवर की हेल्प कर रही हैं।" ये कहते हुए नीरज के चेहरे पर घृणा के भाव थे।
"नीरज..!! बिहेव..!!" इंस्पेक्टर कदंब ने नीरज को टोका तो शीतल ने पलकें झपकाकर कदंब को शांत रहने का इशारा किया और नीरज की बात का जवाब खुद देने का इशारा किया।
"इस बात का जवाब मैं खुद दूंगी.. आप बिल्कुल भी परेशान ना हों..!!" आँखों आँखों में इशारा करते हुए शीतल ने कदंब से कहा तो कदंब के दिल को थोड़ी राहत मिली और एक चैन की साँस कदंब ने ली।
"सो सब इंस्पेक्टर नीरज..!! आप कह रहे थे कि मेरा एक्सपेरिमेंट फेल हो गया.. है ना..!!" शीतल ने नीरज की तरफ एक गहरी नजर से देखते हुए पूछा तो नीरज थोड़ा सकपका गया और गर्दन हिलाकर हाँ में जवाब दिया।
"ठीक है.. एक्सपेरिमेंट फेल हुआ है या नहीं ये अभी शाम तक ही पता चल जाएगा। लेकिन मैंने कोशिश तो की ना.. मैं यूँ ही हाथ पर हाथ धरे बैठी तो नहीं। एक और सबसे महत्वपूर्ण बात..!! वो यह कि हमारे एक्सपेरिमेंट सफल हो या नहीं किसी भी परिस्थिति में फायदा हमें ही होने वाला है।"
शीतल के इतना बोलते ही इस बार कदंब ने बीच में ही टोकते हुए पूछा, "हमारा फायदा..!! वो कैसे डॉक्टर..??"
"देखिए..!! जब हमने इतनी कोशिशें उस जीव के भ्रूण को खत्म करने की की पर वो हम कर नहीं पाए। तो फिर मैंने अपने एक्सपेरिमेंट का आइडिया ही चेंज कर दिया। अबकी बार मैंने सारा प्रोसेस ही उल्टा कर दिया.. और उस बच्चे की ग्रोथ को बहुत ही ज्यादा बढ़ा दिया।"
"क्या..???" सभी का समवेत स्वर गूंजा और सभी के माथे पर पसीना चमक उठा और सभी के बीच खुसुर-पुसुर शुरू हो गई।
इंस्पेक्टर कदंब उठकर शीतल के पास गए और उन्होंने झिंझोड कर शीतल से गुस्से में कहा, "तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है..?? ये क्या नई मुसीबत पैदा कर दी तुमने?? हम वैसे ही उन अजीब जानवरों से पार नहीं पा पा रहे और अब ये नन्हा जीव पता नहीं क्या उत्पात मचायेगा।" कहते हुए इंस्पेक्टर कदंब ने वहीँ बैठकर अपना सिर पकड लिया।
नीरज भी गुस्सा करते हुए कहने लगा, "आपको पता भी है आपने कौन सी नई मुसीबत को इनवाइट किया है। इसका परिणाम क्या हो सकता है..?? हां..! आपको क्यों फर्क़ पड़ेगा.. आपको थोड़ी उन जानवरों के बीच ड्यूटी करनी है.. आपके परिवार पर थोड़ी कोई मुसीबत आई है??"
"स्टॉप इट..!! नीरज एंड होल्ड योर टंग..!!!" शीतल ने तेज आवाज में कहा तो जो भी खुसुर-पुसुर हो रही थी पर एकदम से विराम लग गया।
" एम आय फूल..?? और यू थाॅट आय एम क्रेज़ी..??"शीतल ने गुस्से में चिल्लाकर पूछा तो सभी को जैसे साँप ही सूँघ गया। किसी की भी आवाज ही नहीं निकल रही थी... सभी बगलें झांकने लगे थे।
"अगर आपको कुछ समझ नहीं आता तो इतना तो वेट कर ही सकते हैं कि सामने वाला अपनी बात कह सके।" शीतल ने गुस्से में कहा। वो अपने आपको हारा हुआ मानकर हताश होकर एक कोने में जाकर बैठ गई।
सभी को अपनी गलती का एहसास हो रहा था उन्हें भी लगा के उन्होंने जल्दबाजी में बिना डॉक्टर शीतल की बात सुने उसे गलत समझ लिया था।
इंस्पेक्टर कदंब ने शीतल के पास जाकर उसके कंधे पर सांत्वना देने के लिए हाथ रखा तब शीतल ने गर्दन उठाकर देखा.. कदंब को शीतल की आँखों में आंसू दिखे। आंसुओ को देखते ही कदंब के दिल में एक अनजाना सा दर्द उठा। कदंब का दिल जोर से तड़प उठा पर वो कुछ कह नहीं सका और चुपचाप वहीं पर खड़ा हो गया।
इस स्थिति मे किसी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहना चाहिए और क्या नहीं। इसलिए सभी ने चुप्पी साध रखी थी।
माहौल में बोझिलता बिखर गई थी.. बस जो मशीन्स काम कर रही थी उनकी बीप की आवाज रह रहकर उस सन्नाटे को भंग कर रही थी।
अभी सब कुछ ठीक हुआ ही नहीं था कि बच्ची के माता-पिता की आवाज कॉरिडोर से आने लगी। दोनों ही अपनी बेटी से मिलना चाहते थे और स्टाफ उन्हें रोकने की कोशिश कर रहा था। सभी उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे थे और वो दोनों बच्ची से मिलने की जिद लेकर बैठे थे। बाहर से आने वाली आवाजों से अंदर के सभी लोगों का ध्यान बाहर चला गया। वैसे तो वो कमरा साउंड प्रूफ था पर इस वक्त बाहर की आवाजें बहुत तेज सुनाई दे रही थी।
आवाज सुनते ही सभी के चेहरे से हवाइयां उड़ गई थी। एकदम से सबकी नजर डॉक्टर शीतल पर चली गई। शीतल भी थोड़ी सी विचलित लग रही थी पर उन्होेंने जल्दी ही अपने आपको संयत कर लिया था। अब शायद वो उस बच्ची के माता-पिता को अपना पक्ष रखने और उन्हें कंविन्स करने के लिए पूरी तरह से तैयार थी।
डॉक्टर शीतल ने जैसे ही बच्ची के माता-पिता से बात करने के लिए बाहर जाने के लिए दरवाजा खोलना चाहा वैसे ही इंस्पेक्टर कदंब ने उसका हाथ पकड़ कर अंदर खींच लिया और दरवाज़ा बंद कर दिया। डॉक्टर शीतल कभी कदंब को तो कभी अपने हाथ को देख रही थी। इंस्पेक्टर कदंब की आँखों में शीतल के लिए फिक्र दिखाई दे रही थी। ये देखकर शीतल के दिल को असीम शांति का अनुभव हुआ।
"तुम्हें किसने कहा कि तुम बाहर जा सकती हो..?" कदंब ने कहा तो डॉक्टर शीतल के चेहरे पर मंद मुस्कान जो अभी कदंब के हाथ पकड़ने से आई थी अचानक ही गायब हो गई।
"वो... वो... मैं.. बच्ची के माता-पिता से मिलने जा रही थी। उन्हें इसकी हालत के बारे में जानकारी देने के लिए।" शीतल ने हकलाते हुए बेड पर लेटी बच्ची को देखते हुए कहा।
"देखिए डॉक्टर..!! ये पुलिस का काम है और हम अपना काम ठीक से करना जानते हैं।" इंस्पेक्टर कदंब ने तेज आवाज में कहा।
इतना सुनते ही शीतल को अपने दिल मे कुछ टूटता.. कुछ चुभता हुआ लगा। एकदम से उसकी आँखों में नमी तैर गई जिसे शीतल ने बहुत ही खूबसूरती से छुपा लिया.. पर फिर भी कदंब ने उसे ऐसा करते देख ही लिया था।
इंस्पेक्टर कदंब अच्छे से जानते थे कि इस समय बच्ची के परिजन बहुत ही गुस्से में होंगे। उन्हें इस वक्त सही गलत का कोई भी अंदाजा नहीं होगा ऐसे में अगर डॉक्टर शीतल बाहर जाती.. तो उसके साथ कुछ भी दुर्घटना हो सकती थी। परिजन गुस्से में मारपीट, गाली गलौज भी कर सकते थे इसलिए ही कदंब ने शीतल को अंदर ही रोक लिया था।
डॉक्टर शीतल को रोकने के बाद इंस्पेक्टर कदंब ने नीरज को इशारा करते हुए बाहर के हालात को सम्भालने के लिए जाने के लिए कहा। नीरज तुरंत ही बाहर निकल गया।
नीरज के बाहर जाते ही एक मिनट के लिए बाहर बिल्कुल शांति पसर गई पर दूसरे ही मिनट में बाहर का कोलाहल बहुत ही बढ़ गया। बाहर की आवाजें बहुत तेज अंदर आ रही थी। जो उस कमरे की खिड़की के कारण था क्योंकि बहुत से लोगों के अन्दर रहने के कारण सफोकेशन ना हो इसलिए खोल कर रखी गई थी। हालांकि पर्दा लगे होने की वजह से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था पर आवाजें बिना रुके लगातार सुनाई दे रही थी। आवाजें साफ़ तो नहीं थी.. इसलिए बाहर होने वाली बातों से सभी अनभिज्ञ थे। फिर भी बाहर क्या हो रहा होगा इस बात का अंदाजा सभी को था।
वो लैब एक फॉरेंसिक लैब थी इसी वजह से यहां कभी जभी ऐसे हादसे हुआ करते थे कि किसी के परिवार ने तोड़फोड़ और मार पीट की हो। वैसे तो यहां तक आना सभी के लिए सरल नहीं था.. पर फिर भी कभी कभी हो जाता था।
जब नीरज उन लोगों को समझा नहीं पाया तब उसने अंदर झांक कर निरीह दृष्टि से कदंब की तरफ देखा। मानो उसे अपनी मदद के लिए बुला रहा हो।
कदंब ने उसकी हालत समझते हुए आश्वासन में बाहर आने का इशारा किया, "बस 5 मिनट सम्भाल लो मैं अभी आया।"
इंस्पेक्टर कदंब जल्दी बाहर निकल गए। बाहर काॅरिडोर में बहुत भीड़ जमा थी। सभी उस बच्ची के परिजन थे जिनमे बच्ची की माँ, पिता, एक बड़ा भाई जो लगभग उस लड़की की ही उम्र का था, उसके 2 चाचा, मामा और कुछ पड़ौसी भी थे।
सभी को बच्ची के बारे में जानकारी चाहिए थी जो उन्हें नहीं मिली थी.. इसलिए सभी थोड़े गुस्से में थे। बच्ची की माँ की हालत रो रोकर खराब हो गई थी। सभी के चेहरों पर दुःख के साथ-साथ पछतावा भी था कि अपनी बच्चें का ध्यान नहीं रख पाए।
इंस्पेक्टर कदंब के बाहर आते ही सबने उसे घेर लिया और अपनी बेटी के बारे में सवाल करने लगे।
"कैसी है मेरी बेटी..?? कल से आप लोग उसे यहां लाए है.. अभी तक भी ना तो उसे देखने ही दिया है और ना ही उसकी कोई ख़बर ही दी है। जिंदा तो है ना वो..??" लड़की की माँ ने रोते हुए पूछा।
लड़की के पिता उसकी माँ के कंधे पर हाथ रखकर उसे सांत्वना दे रहे थे। बाकी लोग भी उसकी माँ के आसपास ही खड़े थे और सबकी नजरों में यही सवाल था।
इंस्पेक्टर कदंब और नीरज दोनों ही वहीं खड़े थे और इस बात का क्या ज़वाब दिया जाए यही सोचने में लगे थे कि एक आवाज से उनका ध्यान टूटा।
"हम अभी लक्ष्मी से मिलना चाहते हैं..!!" एक रौबदार आवाज गूंजी.. वो आवाज उस बच्ची के दादाजी की थी जो अभी फ़िलहाल किस हालत में थी.. उस बारे में तो पुलिस को भी ठीक से जानकारी नहीं थी।
"आप..??" कदंब ने पूछा तो बच्ची के पिता ने बताया, "ये मेरे पिता जी और लक्ष्मी के दादाजी पंडित कमल नारायण शास्त्री हैं..!! काफी सालो के बाद ये इस शहर में लौटे हैं वो भी केवल लक्ष्मी के कारण। अन्यथा इन्होंने शहर वापस नहीं लौटने की प्रतिज्ञा की थी।"
"प्रतिज्ञा..!! कैसी प्रतिज्ञा..??" नीरज ने पूछा।
"फ़िलहाल हम यहां मेरी लक्ष्मी के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए इकठ्ठा हुए हैं.. ना कि मेरी प्रतिज्ञा के बारे में जानने.. आई बात समझ।" कमल नारायण शास्त्री ने अपनी भारी भरकम और रौबदार आवाज में कहा तो नीरज ने बिल्कुल चुप होते हुए अपनी गर्दन हिलाकर सहमति देते हुए कदंब की तरफ देखा.. जो उन्हीं की तरफ देख रहा था।
कदंब ने उन्हें समझाते हुए कहा, "कमल नारायण जी..!! मैं जानता हूँ कि आप सभी लक्ष्मी के बारे में जानना चाहते हैं पर इस समय हम कुछ भी आप लोगों को नहीं बता सकते.. आप लोग समझने की कोशिश कीजिए।"
"हमें कुछ भी समझने की आवश्यकता नहीं है..!" ऐसा कहकर कमल नारायण झटके से केबिन की तरफ बढ़ गए।
इंस्पेक्टर कदंब और नीरज भी उनके पीछे उन्हें रोकने के लिए आगे बढ़े। लेकिन रोकते रोकते भी उन्होंने कमरे का दरवाजा खोल दिया।
दरवाजा खुलते ही अंदर की हालत देखकर उनकी चीख निकल गई।
"आऽऽऽऽऽऽ....!!!"
क्रमशः.....
Punam verma
26-Mar-2022 06:05 PM
Pura ka pura suspense 👌👌
Reply
🤫
03-Sep-2021 06:14 PM
सस्पेंस ...रख दिया अंत में.....अगले भाग की प्रतीक्षा में
Reply
Sana khan
01-Sep-2021 06:03 PM
Wow
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